Sunday, February 02, 2020

नीति


कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम् ।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत् ॥ 
                            -महाभारत, विदुरनीति

विदुर जी कहते हैं-
जो जैसा करे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करो । यदि कोई तुम्हारे साथ हिंसा करता है, तुम भी प्रतिकार में उसकी हिंसा करो ! इसमें मैं कोई दोष नहीं मानता; क्योंकि शठके (दुष्ट के) साथ शठता ही करने में भलाई है।

श्री कृष्ण जी भी कहते हैं:

ये ही धर्मस्य लोप्तारो वध्यास्ते मम पांडव।
धर्म संस्थापनार्थ हि प्रतिज्ञैषा ममाव्यया।।
                                      (महाभारत)
धर्म की स्थापना के लिये मैं धर्म का नाश करने वालों का वध करता हूँ।

वेद में भी आज्ञा है कि पापियों, कपटियों, छलियों, मायावियों अर्थात्‌ नौटंकबाजों को कपट, छल से मार दो। 

मायाभिरिन्द्रमायिनं त्वं शुष्णमवातिरः।
                                  (ऋगवेद१/११/६)

अर्थात, हे इन्द्र! मायावी, कपटी, तथा छली को माया से पराजित करो। "मायाभिरिन्द्र मायिनं" मायावी को माया से मार दो।

उपरोक्त शास्त्रीय तथ्यों को पूर्णता प्रदान करता यह प्रचलित श्लोक,

“अहिंसा परमो धर्मः
  धर्म हिंसा तथैव च:।।”

अहिंसा परम धर्म तो है लेकिन धर्म के लिए, यानि धर्म रक्षार्थ हिंसा भी परम धर्म है।

श्री कृष्ण भी कहते हैं

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
                                                  (गीता)
अर्थात्‌ जब जब धर्म की हानि होती है तब तब मैं धर्म के उत्थान के लिए जन्म लेता हूँ।
सज्जनों की रक्षा करता हूँ और दुष्टों का विनाश करता हूँ। धर्म की स्थापना के लिये युग युग में प्रकट होता हूँ।
स्मरण रहे कुरुक्षेत्र में जब अर्जुन ने युद्ध से इन्कार कर दिया था दुष्टों का संहार करने के लिए प्रेरणास्वरुप श्री कृष्ण ने ऐसा कहा था। 

अतएव, अहिंसा का तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि अपने ऊपर हिंसा होने दिया जाए। बल्कि ऐसी स्थिति में प्रतिहिंसा अपने, अपने ऊपर आश्रित लोगों और अपने धर्म के रक्षार्थ आवश्यक है, पुण्य स्वरुप है। 

✍️शशांक शेखर 







                                                      

No comments:

Post a Comment

तुलसी दास कृत रामचरितमानस की चौपाई "ढोल गँवार शूद्र पशु नारी" का उचित-अनुचित के आलोक में अवलोकन

काव्य रचना एक विधा है।   कविता हिन्दी व्याकरण के अनुसार नहीं अपितु छंद के आधार पर होती है। कवि छंद के प्रवाह में ऐसे स्व फुरित शब्दों का...